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विकृति की और बढ़ते कदम

एक कहानी कहते कहते
एक कहानी कहते कहते
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सोच और समझ को हम मनुष्यों से जोड़कर देखा जाता है और हम इसके पालक और निर्वाहक होते हैं लेकिन आज मुझे नेहा की कहानी याद आगई, हांजी सोच और समझ के दायरे का एक परिणाम ……….
नेहा एक सुन्दर और सभ्य लडकी थी और शिक्षा ने सुके गुणों में चार चाँद लगा दिए थे! समय अपनी चाल चलता गया और एक समय वह आया जब उसकी विवाह की बाते होने लगी, और इसी पल से उसके जीवन का कला अध्याय शुरू हुआ, अपने परिवार की अवस्था के अनुरूप वह उच्च शिक्षित थी बस अपने पिता की इच्छा के विरुद्ध जाकर उसने नौकरी नहीं की और सरकरी नौकरी उसको मिली नहीं,
लेकिन विवाह के बाजार में उसकी यही एक कमी ने उसका श्रंखला की अंतिम कड़ी में लाकर खड़ा कर दिया! जिनके पुत्र इंजिनियर थे उनके सुपुत्रों के साथ उनकी भी कामना इंजिनियर बहु की होती जो की नेहा थी नहीं! इसी प्रकार उसके लिए वर मिलने में दिक्कत आने लगी जाती के बंधन में रहे हुए लड़के लड़कियों के लिए विवाह के सिमित अवसर रह जाते हैं और उनमे भी यह समस्या के ज़्यादातर लड़के अब प्रेम बंधन में बंधने लगे जिससे वे आत्मनिर्भर होकर अपनी प्रेयसी को जीवन संगिनी बना लेते हैं और जो रह जाते हैं उनकी कामनाये बढती जा रही हैं, जैसे के चिकित्सक को चिकित्सक पत्नी चाहिए जिससे के पारस्परिक सामंजस्य स्थापित हो, किन्तु साथ में दहेज़ और सौंदर्य भी आवश्यक है, यही है इंजिनियर युवा की स्तिथि कालेज से निकलते ही पहली घोषणा यह होगी के जीवन संगिनी अपने सामान इंजिनियर चाहिए……कहने का तात्पर्य है की हमारी नेहा के समस्त गुण मात्र एक गुण न होने एक कारण नगण्य हो गए, मुझे नहीं पता नेहा का भविष्य क्या होगा पूरा विश्वास है के उसके लिए परमेश्वर ने उचित सोचा होगा किन्तु एक वैचारिक मन नहीं रुका मेरा………….मैं सोचती हूँ के क्या होता जा रहा है समाज को , अब किसी को परिवार का सदस्य नहीं एक पद चाहिए……..
मेरा प्रश्न है के इस बात का क्या अंदेशा कल को सामान पद वाली पत्नी आकर सामंजस्य कर पायेगी, मैंने तोह मनोविज्ञान में पढ़ा है के यह मनुष्य की अपनी भीतरी चेतना शक्ति होती है और स्वस्थ विचारधारा जो हमें आपस में जोड़ने का प्रयास करती हैं ! क्या यह तथ्य गलत है! द्वितीय मैंने देखा मेरे एक सम्बन्धी हैं जिन्होंने ऐसे ही एक इंजिनियर लड़की से विवाह किया जो गर्भिणी होते ही नौकरी छुडवाकर घर में बैठा दी गयी और ५ वर्ष से मात्र गृहणी का जीवन जी रही है! तोह क्या यह उस स्त्री के गुणों का हास नहीं!
क्या अन्य माध्यमो से प्राप्त शिक्षा का कोई महत्व नहीं, क्या हम एक विकृत समाज को जनम नहीं दे रहे , जिसमे कल को यह द्रश्य होगा, के माता पिता कहेंगे के कुछ नहीं बेटा बस एक डिग्री ले आओं और कुछ माह के लिए जैसे वैसे नौकरी कर लो बाकि सब योग्यता एक तरफ नौकरी होना अत्यंत अवश्यक है!
और एक स्तिथि यह भी तोह है के हर परिवार अपनी बेटी को उससे अधिक कमाऊ पति देने की कामना करता है, ऐसे में यह कथित इंजिनियर और चिकित्सको को वो उच्च स्तरीय लोग क्या अपनाएंगे!
अंत में यही कहूंगी के समाज एक नयी विकृति की और बढ़ रहा है, आशा करती हूँ समय रहते हम जाग जाएँ!

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