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शिक्षक दिवस मेरे लिए एक बेहद निजी और अनमोल अनुभूति है. मेरे जीवन में और व्यक्तित्व में बहुत कुछ मेरे शिक्षको से मिला है. मेरी प्रथम और सुन्दर स्मृति हैं श्री मति बेनट मैडम, वे एक अलग धर्म से आती थी किन्तु मैंने सदैव उनसे कुछ न कुछ सीखा, जब प्रथम बार कक्षा दो में मैंने उनको देखा तोह उनके लम्बे लम्बे केशो पर मेरी द्रष्टि टिक गयी और सदैव वाही देखती रहती थी.लेकिन धीरे धीरे उनकी मृदुभाषा और ज्ञान भरी कहानियों में मेरा मन रम गया. आज भी उनकी सिखाई बाते जीवन में पथ प्रदर्शन करती हैं. मैं नहीं जानती वो आजकल कहाँ हैं किन्तु अपने मन से आज सभी के सामने उनको नमन करती हूँ.
उसके बाद जब मैं अपनी बारह्न्वी की परीक्षा में बैठने जा रही थी तब एक विषय अंग्रेजी से मुझे काफी समस्या हुई, पढ़ने वाला कोई नहीं और कक्षा में समझ नहीं आया. ऐसे में मेरे जीवन में आई सीमा दीदी. इन्होने मुझे आत्मविश्वास दिया. मैं बेहद चुपचाप और गम सुम रहा करती थी, अपने मन की बात किसी से कह्नातोह अत्यंत दुष्कर था, मेरी इसी समस्या को उन्होंने समझा और पढ़ाते हुए न जाने कब वो मेरे मन के बंद द्वार को खोल गयी पता भी नहीं चला. आज भी मैं उनके संपर्क में हूँ और उनमे एक पथप्रदर्शक को पाती हूँ!
इसी प्रकार अगले चरण में मेरी भेंट हुई श्री मति अंजना गोविल जी से यह भी मेरी अंग्रेजी भाषा को पढाया करती थी, वे बेहद सुन्दर भाषा का ज्ञान और खुले मन से गगन में उडती उनकी सोच. उनके संरक्षण में मैं जाना की हमें किसी भी कार्य को चिंता के साथ नहीं बल्कि एक आनंद की अनुभूति मानकर करना चाहिए. कार्य स्वयं अच्छा होगा. और उनकी यह सोच सही भी है, मैंने खुद को कई बार अपनी अधिक चिंतन की आदत के कारण काम बिगाड़ते पाया तब उनके उस नए तरीके ने सच में काफी सहायता की. वो अब अपने जीवन में व्यस्त हैं, पर उनकी सोच आज भी साथ है.उनके बाद आज मैं पत्राचार के माध्यम से पढ़ रही हूँ, कहने को दूरस्थ शिक्षा में शिक्षक से कैसा संपर्क किन्तु ऐसा नहीं है, मेरे २ शिक्षक, हनीफ सर और कामक सर यह दोनों जितने मन से पढ़ाते हैं उसका क्या कहना, एक बार जब मैंने किसी काम से हनीफ सर को फ़ोन किया तोह तुरंत पहचान कर बोले , हाँ ऋतू बोलो….. मैं स्तब्ध रह गयी और सच में प्रभावित हो गयी उनके हमारे प्रति समर्पण पर.
इन सबके बाद एक पहलु यह भी आया जब मैं स्वयं घर में बच्चो को पढ़ाने लगी, उस समय मैंने जाना की मेरी सभी शिक्षिकाए सच में जादूगर थी और यह कार्य सच में बहुत बड़े दायित्व का है, लेकिन खुश हूँ यह जानकार कि मेरे छात्र और छात्राएं भी मेरे से खुश और संतुष्ट हैं. आज मेरे अधिकतर शिक्षक मुझसे दूर हैं लेकिन उनके लिए मेरे मन में प्रेम और सम्मान के फूल आज भी समर्पित हैं. सच में गुरु ही वह है जो सामान्य राजकुमार को अर्जुन बना देते हैं, आशा है उनका आशीर्वाद आज भी मेरे साथ होगा, और अनुरोध है के यदि आप यह लेख पढ़े तोह मुझसे संपर्क करे. मुझे असीम अनुभव होगा.
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