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सीता आज भी निर्वासित ही है

एक कहानी कहते कहते
एक कहानी कहते कहते
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सुन्दर सामाजिक संरचना प्रत्येक सामाजिक व्यक्ति चाहता है! लेकिन इस समय हम अपने दायित्वों से कही न कहीं चूक आवश्य रहे हैं! मैं प्रकाश डालना चाहूंगी प्रेम विवाह प्रथा पर, जो की आज के नवयुग की सबसे प्रचलित व्यवस्था है! सच्मुश दहेज़ और जाति प्रथा का सबसे सुन्दर यही हल है इसमें जाति व्यवस्था के दुष्प्रभाव तोह दूर होते ही हैं साथ ही वर और कन्या पूर्व में प्रेमी जोड़े के माध्यम से एक दुसरे के व्यक्तित्व से अवगत होकर स्वयं चयन करते हैं! बहुत सुन्दर समामेलन होता है तोह परिवारों का संस्कृतियों का!
लेकिन अब हम आते हैं इसके भी अन्य प्रभाविक रूपों पर, जैसा हम जानते हैं समाज में सभी वर्ण और जातियों में यह व्यवस्था अपनाई नहीं जाति है अतः होता यह है के सुयोग्य कन्याओं के लिए , जिनके माता पिता और वे स्वयं जाति में विवाह के समर्थक है उनके लिए सुयोग्य वरो का अभाव हो जाता है, इसका कारन एक प्रमुख यह भी है के सभी परिवार आज भी हमारे देश में अपनी बेटियों के लिए थोड़े रक्षा की मुद्रा में रहते हैं जिस कारण अक्सर वे प्रेमपाश में बंधन पसंद नहीं करती या यूँ कहिये की प्रेम विवाह के साथ आने वाले समस्याओं और माता पिता के प्रेम के समक्ष वे स्वयं को नतमस्तक पाती हैं! दूसरा रह भी के लडको का क्या है, पत्नी ब्याह कर अपने घर में ले आये, लेकिन जो इस प्रेम विवाह में बंधकर आई है उसको इस कच्ची डोरी को सम्हालने में समय और धर्य लगता है. तिस पर वह समाज और परिवार के कटाक्ष का प्रथम केंद्र बिंदु बन जाति हैं!
इस प्रकार अधिकतर संस्कारी बेटियां, प्रेम विवाह के नाज़ुक और विवादस्पद समबन्ध से स्वयं को दूर रखती हैं! लेकिन यही कुछ दबंग कन्याओं का जमावड़ा भी है, जिनके जीवन का लक्ष्य मौज और आनंद है! और जिसके लिए वह कुछ भी कर सकती हैं , इस प्रकार की कन्यायें अक्सर उन्मुक्त होती हैं और अपने इसी स्वछच्न्द्ता के कारण आकर्षण का केंद्र भी होती हैं! हम सभी जानते हैं कक्षा की मेधावी और सरल छात्र के इतने मित्र सखी नहीं मिलेंगे जितने रंगीन तितलियों पर मंडराने वाले भंवरे होंगे! नतीजा प्रेम विवाह…………….और माता पिता क समक्ष आता है यह ..” पहले हमने प्रेम किया अब करेंगे प्रेम विवाह” कुछ विवाह होते भी हैं किन्तु कई बार मासूम पक्ष इस धोखे में अपना सर्वस्व खो देता है! और इस प्रकार के प्रेमी जोड़े, स्वछ्च्नद होकर उन्मुक्त हवा में विचरण करते हैं जिससे कालेज और कार्यालय दोनों का वातावरण दूषित होता है! इस प्रकार के संबधो में संस्कारों की हत्या बहुत सामान्य है!
प्रेम की नैय्या में सवार प्रेमी पंछी भूल जाते है सामाजिक मरियादा और उसके नियम, खुले आप यह प्रेम अभिव्यक्ति समाज के समस्त तबको के लिए विष बनती है और अन्यो लोगो को आकर्षित करती है.! लेकिन प्रेमी यह भूल जाते हैं और अक्सर अपने में मस्त होकर प्रदुषण फैलाते हैं! माता पिता भी कुछ मामलो में स्वीकार कर लेते हैं किन्तु सत्य यह है के, वे स्वयं अपने में निश्चित नहीं होते के वे जो कर रहे हैं वो उनकी परिपक्व सोच के माध्यम की स्वीकारोक्ति है अथवा संतान के विद्रोह कर पलायन को रोकने के कारण उत्पन्न हुआ समझौता! कुछ मामलो में विवाह के पश्चात जोड़े स्वयं कहते भी हैं के भूल हो गयी!
लेकिन सब का सार यही है के समाज के निति नियम अपनी गरिमा रखते हैं इस मूल्यों की तिलांजलि देकर हम आधुनिक नहीं बल्कि सामाजिक प्रदुषण को बढ़ावा दे रहे हैं ज़रुरत है परिवार में जुड़कर अपने बच्चो से संवाद की भले बुरे की सोच विकसित करने की, तभी हम अपने समाज को सुन्दर बना सकेंगे! चाणक्य ने भी कहा है अपनी जाति और वर्ण का तजने वाले कभी सुखी नहीं रहते, सत्य है क्योंकि हम धीरे धीरे सामाजिक असंतुलन को बढ़ावा दे रहे हैं! इस प्रकार की शादियाँ, समाज में उन योग्य और गुणवान कन्याओं के लिए विष हैं जिनमे संस्कार हैं, अथवा जो अपने माता पिता को देव तुल्य मानकर उनकी ख़ुशी के लिए जीती हैं और जो संस्कारी एवं शिक्षित हैं! थ क्या हम इस प्रकार की कन्याओं के साथ अन्याय नहीं कर रहे के ऐसी कन्यायें या टफ किसी अयोंग्य से ब्याही जाए या फिर वे भी मार्ग पकड़ ले प्रेम विवाह का………शायद सीता आज भी निर्वासित ही है

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