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राष्ट्रीय परतीक चिन्ह इसलिए बनाये गए जिससे के हम अपने देश की गरिमा को प्रफुल्लित और पालित कर सके. तिरंगा , अशोक की लाट अथवा हमारा राष्ट्रीय गान सब को जब हम देखते हैं तोह मन में राष्ट्र प्रेम के दीप प्रज्ज्वलित होते हैं और कहीं से मन में जो एक भावना देश के लिए जाग्रत होती है उसको शब्दों में पिरोना तोह संभव ही नहीं है. हम जब भी कभी फौजियों को देखते हैं मन सम्मान से भर उठता है और मैं जानती हूँ हम सभी के ह्रदय में कहीं न कहीं देश के लिए कुछ कर गुजरने का एक मधुर सा स्वप्न सदा ही रहता है, जिसको हम सभी पूरा नहीं कर पाते किन्तु फिर भी जब इन राष्ट्रीय प्रतीकों को देखते हैं मन भावनाओ के हाथों बेमोल बिक जाता है.
अब प्रश्न आता है हमारी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में इनका उपयोग होना, अभिव्यक्ति हमारा संवैधानिक अधिकार है जिसको की हमारा संविधान विभिन्न अनिछेदो के माध्यम से स्पष्ट करता है, मोटे तौर पर कहे तोह हम अपनी भावनाओ को विभिन्न इन्दिर्य जनित मश्यमो से प्रदर्शित कर सकते हैं. और यही लिखित रूप से प्रदत्त अधिकार हमें सम्पूर्ण विश्व क समक्ष सर ऊँचा कर यह कहने की शक्ति देते हैं के हाँ…”हम भारतीय हैं जहाँ पर हम लोकतंत्र में जीते हैं”
लेकिन हर अधिकार अपने साथ दायित्व भी लेकर आता है. हमारी स्वतंत्रता की सीमा वहां तक होनी चाहिए जहाँ से किसी का अपमान आरम्भ न हो. इन्ही भावनाओ को ध्यान में रखते हुए , उसी संविधान में कर्तव्यों का भी वर्णन किया गया है. हम सभी सदैव अधिकारों के लिए तोह लड़ते हैं. लेकिन क्या कोई एक भी है जो कर्तव्यों के लिए आगे बढ़ता है. हमने जब अपने राष्ट्र चिन्हों को लेकर जब अपमान जनक द्रश्य अंकित किये तो सर्वप्रथम हमने स्वयं अपने देश की गरिमा को नीचे गिरा दिया, अब किसी अन्य की आवश्यकता तो रही नहीं न……
अपनी बात कहने के बहुत से तरीके हैं हम सभी विद्रोह प्रदर्शन करते हैं, किन्तु सामन की तोड़ फोड़ से किसका नुकसान होता है, अंततः हमारा…..यदि हम राष्ट्रीय धरोहरों को नुक्सान पहुंचाएंगे, प्रतीक चिन्हों के साथ खिलवाड़ करेंगे तो उससे इन निर्लज्ज नेताओं को और मंत्रियों को रंच मात्र भी लज्जा नहीं आने वाली बल्कि हम भी उनके ही मार्ग पर चलते से प्रतीत होंगे. बुराई को हमेशा अच्छाई से ही साफ़ किया जा सकता है, बुरे बनकर नहीं. जो नहीं जानते की मानवता का धर्म क्या है उन मद्मास्तो को इसप्रकार के किसी भी कृत्य से अनिभूति नहीं होगी. बेहतर होगा के एकत्र होकर हम सब उनका विरोध करे जो स्वयं को परम समझ बैठे हैं, यह समय क्रांति करने का है, अपने देश की गरिमा को प्रश्न चिन्ह देने का नहीं है.
आगे बढ़ो हिम्मत साहस के साथ और लिखो कुछ ऐसा जिससे सनसनी नहीं, अंतरात्मा जागे एक एक भारतीय की , उसका जागना अति आवश्यक है. क्यों कर हम सह रहे हैं चुप चाप स्वयं से पूछने को मजबूर हो जाए एक एक नागरिक कुछ ऐसा उकेर दो कागज़ पर के मन में देश प्रेम की भावना जो बरसो से पड़ी पड़ी धुल फांक रही है वो जाग उठे और हर भारतीय कहे……………….जय हिंद!
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