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एक कहानी कहते कहते
एक कहानी कहते कहते
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मौजूदा सरकार के कार्यकाल में जितने घोटाले सामने आये आजतक किसी सरकार के कार्यकाल में देखने को नहीं मिले. लेकिन प्रकट समय में किसी पर भी कोई सख्त कार्यवाही या उनका परिणाम देखने में नहीं मिल रहा, तिस पर हमारे राजनेताओं की विशिष्ट टिप्पणियां जले पर नमक का सा काम कर जाती हैं. कितनी लज्जाजनक है यह टिप्पणियां हम सभी जानते हैं, ऐसा लगता है जैसे के ” चोरी और उसपर सीना जोरी” आती ही नहीं शर्म इन्हें.
दूसरी तरफ नए नए कर लगाये जा रहे हैं, जिनका भार सीधा निर्धनों पर और माध्यम वर्गीय परिवारों पर पड़ता है, किसी भी व्यवस्था में करभार इस प्रकार का होना चाहिए जिससे की असमानता दूर हो नहीं कि उसमे वृद्धि. लेकिन अब इस आर्थिक नियम की खुल कर पूरे आत्मविश्वास से धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं. लेकिन अब भी कहीं कोई आशा की किरण नहीं की यह सब कब रुकेगा. मौजूदा घटक दल अपने स्वयं के खेल में बसे रहते हैं. ममता बेनर्जी बार बार धमकियाँ देती हैं लेकिन करती कभी कुछ भी नहीं, और इसी प्रकार अन्य घटक दल भी स्वार्थ की राजनीति में संलिप्त नज़र आते हैं.
जितने घोटाले हो रहे हैं और उनमे जितने अधिक धन के लें दें का खुलासा हुआ है यही धन अगर वसूल कर देश हित में व्यय किया जाए तोह निश्चय ही हमें विश्व बैंक की आवश्यकता नहीं रहेगी. मगर इतना सोचे कौन और करे भी कौन. आज हमारे देश में नेता बहुत हैं किन्तु व्यक्तित्व का अभाव है, एक ऐसा व्यक्तित्व जिसमे राष्ट्र को प्रस्तुत करने की क्षमता हो, जिसमे सूझबूझ हो, जिसमे शक्ति हो नियंत्रण करने की उन शक्तिशाली भ्रष्ट पुतलो की जो महज़ स्वार्थ को सर्वोपरि रखते हैं. किन्तु ऐसा एक भी नेता कहीं नहीं नज़र आता. और शायद तब तक हमें इस प्रकार की नासमझ सरकारे झेलना ही होंगी. जो राजनैतिक भाषा और चरित्र दोनों से अपिरिचित हो चुके हैं. सत्ता मद में इतने खोये हैं के अपने शब्दों और वाक्यों का मर्म तक नहीं दिखाई देता. काश अगर आती थोड़ी शर्म इन्हें…..

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