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बलात्कार मानवीय सभ्यता की सबसे लज्जाजनक उपलब्धि है। जिसके समक्ष कोई अन्य अनर्थ नहीं है किसी भी स्त्री के साथ, लेकिन आज भी एक ऐसा पुरुष वर्ग है जो स्त्री के मात्र देह के कुछ भागो पर अपनी गिध्ह से भी बदतर नज़र गढ़ाए रहता है। गिद्ध से बदतर इसलिए कहूंगी क्योकि वह अपनी क्षुधा की तृप्ति के लिए मांस नोचता है झपट पड़ता है किन्तु पुरुष उसको ऐसी किसी महत्वपूर्ण वजह की ज़रुरत नहीं।वह अपनी हवस की शांति के लिए निकल पड़ता है शिकार करने और फिर सामने जन्मजात बालिका से लेकर 80 वर्षीया व्रध्हा ही क्यों न हो उसको कोई फर्क नहीं पड़ता बस उसको अपनी खुराक की तलब है।मिल जाए
ऐसा समाज में क्योकर हुआ है इन कारणों को भी एक बार देखना उचित है। सबसे पहले यह मोबाइल फ़ोन जिनको मत पिता अपनी हसियत दिखने के उद्देश्य से बच्चो को देते हैं इनमे उपलब्ध इन्टरनेट सुविधा उनको माता पिता की नज़र से छिप कर अधकचरा अश्लील सामग्री उपलब्ध करवा देती है, जिससे समय से पहले यह बड़े हो जाते हैं। घर में दादा दादी से कहानियो के माध्यम से संस्कार पाने की जगह वहशत भरे द्रश्य देखते हैं हमारे नौनिहाल इससे बुरा और क्या होगा।
दूसरा है स्त्री के प्रति सम्मान में अभाव, हर घर में एक प्यारी सी बेटी होने के बाद कुलदीपक की क्यों आवश्यकता रहती है। क्या बेटी कुल दीपिका नहीं कल्पना चावला और किरण बेदी के देश में कब से नारी मात्र वस्तु बन गयी। यह वाही इंदिरा गाँधी का देश है जिसके हौसलों के सामने सब हारे थे। इसी देश की फातिमा बीबी , सिरिल , रानी लक्ष्मी बाई , प्रतिभा पाटिल से लेकर आज मीरा कुमार तक हैं फिर बेटे की इतनी चाहत क्यों? उस पर जब सपूत जन्म लेते हैं वो जन्म के साथ सम्मान का विशेष पंखा लेकर पैदा होते हैं। वाही सब हैं बहन कमज़ोर है और उसको दुसरे घर जाना है किन्तु बेटा अपना है उसको छूट दो। इस सोच ने बेटी को दब्बू और बेटे को दब्बंग कर दिया और नतीजा सामने है।बेटे या बेटी की अपेक्षा समाज को देश को एक बेहतर नागरिक देने का सोचे तोह कितना अच्छा होगा।
ऊपर से हमारी लचर पोलिस और कानून व्यवस्था की प्रतिपालना। नियम हैं कानून भी हैं पर उनको निभाने वाले ख़तम हैं उस देश में क्या नियम होगा जहाँ किसी की सुनवाई न हो। प्रधानमन्त्री स्वयं संवेदनहीन हो और मंत्रियों की तोह क्या कहिये। जो ज्वालामुखी दिल्ली में फटा है उसके नन्हे मुन्ने कतरे आपको आसपास मिलेंगे किन्तु कहीं कोई एक हाथ उनको बुझाने नहीं बढ़ता।
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