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मित्रता स्वयं में एक अनमोल उपहार है। लेकिन कई बार यह एक पीड़ा भी है। हम बहुत आसानी से अपने मित्र या सखी पर विशवास कर लेते हैं किन्तु यह तोह समय स्पष्ट करता है न की व्यक्ति विशवास योग्य है भी के नहीं। बेहतर है जब मन उदास हो तोह संगीत सुन लिया जाए या कहीं घूम फिर लो मगर अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति करते समय हज़ार बार अवश्य सोचे।
हम सभी जीवन में भाग रहे हैं किसी पर समय नहीं है एक दुसरे के लिए। ऐसे में कोई अगर दो क्षण आपको सुन भी रहा है तोह निश्चय ही वह पूरे मन से नहीं सुन पता, दूसरा यह है के हम सभी प्रकार विषय को अपनी समझ, सूझ और व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर ग्रहण करते हैं। ऐसे में निश्चय ही वैचारिक भिन्नता समस्या को विकट या कुरूप कर सकती है एवं वैचारिक भिन्नता के कारण हम अपना निकट समबन्ध भी खो सकते हैं। अतः ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक है।
जाति के अनुसार या धर्म के अनुसार परम्पराए एवं नियम करम बदल जाते हैं यह भी एक महत्वपूर्ण हेतुक है भेद का समझ के। जैसे मेरी एक सखी ने मेरी ही दुसरी सखी के लिए 41वर्षीय जीवन साथी का सुझाव दिया वो भी एक अनाथ एवं अपने चयन को इस आधार पर उचित कहने लगी के मर्द की उम्र नहीं देखि जाती। हमारे में तोह निकाह पढवा देते हैं।निश्चय ही उसके मन में खोट न हो किन्तु जिस 27वर्षीय कन्या के लिए सुझा रही थी वह तोह इस नियम के साथ जीवन जीने वाली न थी। लेकिन समय किसके पास धरा है आज जो इतना धिमाग लगाये।
तोह बेहतर है खुद से मित्रता की जाये और अपने साथ सब बनता जाए किसी और से नहीं।
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